बोल उठी बिटिया (कविता)

 बोल उठी बिटिया 


इस कविता में बिटिया की तुतली बोली और मौज से मिट्टी खाने के प्रसंग का वर्णन है | बेटी की मंजुल मूर्ति देखकर खिल उठने वाली माँ की ममता का सहज चित्रण भी है |


कविता (Poem)

बोल उठी बिटिया

मैं बचपन को बुला रही थी, 

बोल उठी बिटिया मेरी;

नंदनवन-सी फूल उठी, 

यह छोटी-सी कुटिया मेरी |


'माँ ओ' कहकर बुला रही थी, 

मिट्टी खाकर आयी थी;

कुछ मुँह में, कुछ लिए हाथ में, 

मुझे दिखाने लई थी |


पुलक रहे थे अंग दृगों में, 

कौतूहल था छलक रहा;

मुँह पर भी आहलाद लालिमा, 

विजय गर्व था झलक रहा |

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