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दो दोस्त थे संजय और मनोज। दोनों बेरोजगार थे। उन्होंने अपने परिचित गुरुजी से अपनी परेशानी बताई और कहा: "गुरु जी, हमें कुछ रूपये दीजिए, जिससे हम कुछ काम–धंधा शुरू कर सकें।"
गुरुजी ने दोनों दोस्तों को एक एक हज़ार रूपये दिए। साथ ही यह कहा, "एक साल के अंदर तुम्हें इन रुपयों को लौटाना होगा।"
दोनों ने गुरुजी की बात मान ली। फिर ये रूपये लेकर चल पड़े। रास्ते में संजय ने कहा, "हमें इन रुपयों से कोई अच्छा काम शुरू करना चाहिए।" पर मनोज ने कहा, "नहीं, अब हम कुछ दिन अच्छे स्थानों पर घूमने जायेंगे , मौज करेंगे ।"
एक साल बीत जाने के बाद दोनों दोस्त गुरु जी के पास पहुंचें। गुरु जी ने पहले मनोज से पूछा, "तुमने रुपयों का क्या किया? क्या लौटाने के लिए रकम लाए हो?" मनोज ने मुंह लटकाकर जवाब दिया, "गुरु जी किसी ने धोखा देकर वे रूपये ठग लिए।:" फिर उन्होंने संजय से पूछा, "तुम भी खाली हाथ आए हो क्या?" संजय ने मुस्कुराकर जवाब दिया, "नहीं गुरु जी, ये लीजिए आपके एक हज़ार रुपए और अतिरिक्त एक हज़ार रुपए।" गुरु जी ने पूछा, "तुम इतने रूपये कैसे कमा लाए? क्या तुमने किसी को धोखा दिया है?" "जी नहीं।" संजय बोला, "मैंने तो अपनी सूझ बूझ और मेहनत से ये रूपये कमाए हैं। एक किसान को परेशान देखकर मैंने उसके सारे फल खरीद लिए। फिर उन्हें शहर में जाकर बेच दिया। इसके बाद वह प्रतिदिन मुझे फल ला देता और मैं उन्हें बेच देता। कुछ दिनों के बाद मैंने शहर में दुकान लेली और फलों का कारोबार शुरू किया।"
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इतना कहकर उसने गुरु जी को मदद करने के लिए धन्यवाद दिया और अतिरिक्त रूपये किसी जरूरतमंद को देने के लिए रखने का आग्रह किया। गुरु जी संजय से बहुत खुश हुए।
उन्होंने मनोज से कहा, "अगर तुम भी समझदारी तथा मेहनत से काम करते तो सफल हो सकते थे।" संजय ने कहा, "अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है। समय का सम्मान करो और श्रम का महत्व समझो। सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी।"
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