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मिली कहीं से कोई माला,
लेकर उसे कंठ में डाला।
बदन पर राख लगाकर,
बिल्ली चली प्रयाग नहाने ||
चुहों से बोली हे प्यारों!
पाप किए मैंने हज़ारों।
ईश्वर का जप करके नाम,
छोड़ दिया चुहे खाने का काम।।
अब तुम चलो मेरे साथ,
नहाकर प्रयाग में लौटंगें साथ।
चूहे, छोड़कर सोच-विचार,
चलने लगे होकर तैयार।।
बिल्ली ने चुहों को खा लिया,
भरपेट खाकर आराम लिया।
अजी, शत्रु को मित्र न मानो,
उसका कहना कभी न मानो॥।
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